Thursday, January 15, 2015

यात्रा

यात्रा के पूर्व यात्री अंत क्यों तू सोचता है....

चल सको तो चलो तुम इन रास्तों पर अनवरत 
इन रास्तों पर बैठ पदचिन्ह किसकी खोजता है। 
यात्रा के पूर्व ....

इस नदी की लहर को देखो, इतराती, बलखाती है 
दुर्गम जंगल, चट्टानों में कैसे यह राह बनाती है;
क्या इसे परवाह है किससे मिलन इनका होगा 
इसीलिए लहरें ये पल-पल, उछाल भरती जाती है।  

यात्री तुम इस सफर का भरपूर आनंद लो 
क्या पता आज है जो, वो कल हो ना हो ;
ये फूल, पत्ते, घास, वृक्ष सभी मुरझाते हैं 
बसंत जल्दी कभी वापस नहीं आते हैं। 

सत्य है ये रास्ते और मंजिल मायाजाल है 
इन मंजिलों ने लूटा जीवन का पूरा साल है;
मंजिलों को छोड़, इन रास्तों की पूजा कर 
ये रास्ते ही धर्म है, यह रास्ता ही देवता है। 

यात्रा के पूर्व यात्री अंत क्यों तू सोचता है....

Sunday, May 05, 2013

रातों की नींद

रातों की नींद क्या होती है?
उनसे पूछ लो
जिनके ख्वाब टूट जाते हैं।


सपनों का महल
बनाया तो उसने था,
मिटटी कच्ची रह गयी
या ईंट तैयार नहीं हुआ,
कहीं संगमरमर की जगह
कांच तो नहीं रह गया ?

ऐसा ही लगता है
मानो समंदर के किनारे
रेत इकट्ठे कर लिए थे,
और उन रेतों से बनाए
सपनों के घरौंदे,
लहरें आती है
छन्न से टूट जाते है
सारे सपने
और मैं जाग जाता हूँ।

रातों की नींद क्या होती है?
उनसे पूछ लो
जिनके ख्वाब टूट जाते हैं।

Friday, April 12, 2013

इंतज़ार




इस सफर  के हमसफर
लौटकर आ जाओ तुम,
मखमलों से ये गलीचे
तेरे लिए ही हैं बिछाये।

मुझे मालूम यहाँ के
रास्ते हैं पत्थरों के,
और तुझे भी पता है
कितने कहाँ चोट खाये।

फिर भी चले कितने यहीं
इन गलीचों के बिना ही,
मखमलों के बिना ही
और फूलों के बिना ही।

इस सफर  के हमसफर
लौटकर आ जाओ तुम,
मखमलों से ये गलीचे
तेरे लिए ही हैं बिछाये।


Tuesday, April 09, 2013

अनजान परिंदे
















अनजान परिंदे आ जाना !
मेरे दिल का पिंजरा खाली है
इसमें कोलाहल कर जाना।

तेरे कोलाहल को सुनकर
मेरे मन के उपवन के
सभी सुमन खिल जायेंगे,
और खिलेंगे जीवन के
सारे मुरझाये सपने ;

ये सपने हैं बड़े रंगीले
लाल, बैंगनी, नीले, पीले
इन रंगों को चुन लेना तुम
अपने सपने बुन लेना तुम।

अनजान परिंदे आ जाना !
मेरे दिल का पिंजरा खाली है
इसमें कोलाहल कर जाना।


Monday, April 08, 2013

ओ राही !

इस जीवन की डगर कठिन
तू संभल के चलना
ओ राही !

कहीं कदम ये फिसल गया
तो तू ठोकर खा जाएगा,
इन पत्थर से, इन काँटों से
पैर तेरे ये छिल जायेंगे,
तेरे पग से लहू की बूँदें
गिर मिट्टी में मिल जायेंगे।

इन सूनी सुनसान डगर पर
कोई एक लुटेरा आ जाएगा,
जीवन भर का अथक परिश्रम
लूट तेरा वह ले जाएगा,
तू खाली हाथ रह जाएगा
इस पथ पर ही पछतायेगा।

इस जीवन की डगर कठिन
तू संभल के चलना
ओ राही !