Wednesday, July 26, 2006

अर्जुन मुझको बनना होगा

केशव बनकर तुम अब आओ
अर्जुन मुझको बनना है,
गीता मर्म मुझे समझाओ
कुरुभूमि में लड़ना है;

गीता-ग्यान को पाकर अब
धनुष हाथ को धरना होगा,
अर्जुन मुझको बनना होगा।

इर्द-गिर्द हैं चक्रव्यूह
धर्मराज का मन व्याकुल,
जयद्रथ के तलवारों से
अभिमन्यु मरने को आतुर;

हे स्यंदन के सारथि अब
उसी जगह को चलना होगा,
अर्जुन मुझको बनना होगा ।

दुह्शासन के हाथों ने
पांचाली का केश उजाडा,
दानवीर भी द्रुपद-सुता को
वेश्या कहकर आज पुकारा;

लाज बचालो द्रुपद-सुता की
मुझको अभी संवरना होगा;
अर्जुन मुझको बनना होगा ।

कर्ण यहाँ कितने भी हों
धरती मेरी मदद करेगी,
भीष्म-ड्रोन जितने भी हों
अर्थी उनकी यहीं सजेगी;

दुर्योधन का दमन मिटाने
तात-गुरु से लड़ना होगा;
अर्जुन मुझको बनना होगा...
अर्जुन मुझको बनना होगा.

और अंत में..........

मादक मौसम आने भी दो,
उन्मादों को छाने भी दो,
कोई स्वर्गिक सुकुमारी
उर्वसी अब आने भी दो;

भोगी नही मैं एक तपस्वी
खुलकर आज ये कहना होगा,

अर्जुन मुझको बनना होगा ॥

Tuesday, July 04, 2006

दुविधा की लहरें

सामने ये सात पहरे
सात कुंडी,सात ताले,
राह दुर्गम,खाई गहरे
बीहड़ जंगल नदी-नाले;

ताले तो मैं तोड़ दूँ पर
क्या करूँ इन पहरों का,
नाले पीछे छोड़ दूँ पर
क्या करूँ इन लहरों का;

लहर है मन में,
लहर है तन में,
पल-पल प्रति-क्षण
लहरें जीवन में;

इन लहरों से टकराकर
कश्ती टूटे साहिल छूटा,
इन शहरों में तो आकर
रिश्ते टूटे नाता रूठा;

रिश्तों की बुनियाद पर अब
टूट जाना चाहता हूँ,
ऐ जिगर के टुकड़े तुझसे
रूठ जाना चाहता हूँ;

लगन है मन में,
अगन है तन में,
कण-कण क्षण-क्षण
मगन चिंतन में;

तोड़ दूंगा पहरों को भी,
मोड़ दूंगा लहरों को भी,
रिश्तों की बुनियाद पर मैं
छोड़ दूंगा शहरों को भी.