Thursday, August 31, 2006

एक और नज़रिया

शरद पूर्णिमा की रात ये
चाँद अपने यौवन पर है,
ओस गिरे हैं,सुमन खिले हैं
जगमग-जगमग डगर-डगर है,
सरिता की ये शांत लहर है,
साहिल पर बैठा कोई चकोर
चाँद देख मन बहलाता है,
चाँद भी ख़ुद पर इतराता है....

अमावस्या की रात ये
अपने गगन में चाँद कहाँ है
ओस कहाँ हैं,सुमन कहाँ है,
अन्धकार हर डगर-डगर है
सरिता में भी कहाँ लहर है,
साहिल पर बैठा वही चकोर
आंसू लाख ये बरसाता है,
चाँद भी ख़ुद पर शर्माता है ....

दिन बदले, बदला नही मौसम
और नज़रिया बदल रहा है
बदल रहा है,बदल रहा है....

...ek aur nazzariya...a sophie production....

Tuesday, August 29, 2006

शतरंज

शतरंज हम खेल रहे थे
मनो-यातना झेल रहे थे,
मैं सोच रहा टेढा-टेढा
वह सीधा-सीधा खेल दिया;
बाज़ी फिर मैं हार गया ....

चाल-चाल कुछ कहते थे
मोहरे-मोहरे बोल रहे थे,
हर स्थिति और परिस्थिति
भेद उसी का खोल रहे थे;

पर मैंने बिना सोचे-समझे
घोड़ा चला, वजीर बचाया,
खेल जीत जब वापस आया
राजा को नही जगह पे पाया;

शायद मैं था हार चुका
तब जाकर ये पता चला,
मेरे जीत पर क्यूँ हैरानी
तब जाकर ये पता चला;

शतरंज नही दो मानव का
शतरंज विचारों का केवल,
अब विचार तो टूट गया
शतरंज भी छूट गया।

Sunday, August 20, 2006

उचित अवसर

अतुल शौर्य से सुशोभित
प्रतापी वीर महादानी,
कुरुक्षेत्र की सनसनी वह
पर दम्भी महा-अभिमानी;

जिस कर्ण के भुजबल से ही
समरभूमि ये डोल रहा है,
आज समर की इस बेला में
सामने निहत्था खड़ा है;

केशव! क्या ये धर्म होगा
निहत्थे पर प्रहार करूंगा,
ले अधर्म का मैं सहारा
शत्रु का संहार करूंगा;

अर्जुन! मिटा दो शत्रु को
उचित अवसर यही है,
ये धर्म और अधर्म क्या
सोचना विल्कुल नही है;

सोच कर तुम क्या करोगे
सोचोगे तब क्या लडोगे,
पार्थ कर्म करते रहो
तभी समर-विजयी बनोगे।

Saturday, August 19, 2006

सूर्यग्रहण

एक दिन अचानक
चंद्रमा मौका पाता है
शक्ति का जोर दिखाता है,
पल भर में ही कोशिश कर
सूर्य के उपर छा जाता है;

अब सूर्य बेचारा क्या करेगा
किससे अपनी बात कहेगा,

वो चाँद कोई इस नभ का है
रात का राजा कहलाता है,
तारों के बीच संवर करके
दुनिया का मन बहलाता है;

सूर्य के बेदाग़ तेज से
दुनिया सदा जली रहती है,
चाँद पर तो दाग भी ये
दुनिया फिर भी खुश रहती है;

सूरज ने तो जल-तपकर भी
चाँद को प्रकाश दिया,
चाँद न जाने किस कारण
उस सूरज का उपहास किया;

समस्या तो ये बहुत बड़ी है
सूर्यग्रहण कोई विकट घड़ी है।

Friday, August 11, 2006

लहरों में उतरता हूँ

शांत तरंगें सरिता की
लहरें बनकर आती है,
देख रहा हूँ कश्ती को
जो लहरों से टकराती है;

साहिल पर बैठा-बैठा
देख-देख मन बहलाता हूँ,
लहरें उठती और गिरती है
तट पर ही पछताता हूँ;

साहिल पर बैठे हमने
कश्ती को चलते देखा है,
लहरों से टकराकर उसको
टूट बिखरते देखा है;

सपनो की नौकाएं आती
जीवन रुपी सरिता में,
साहस का पतवार थामकर
नाविक कोई उतरता है;

धाराओं में जाकर वह
भंवरों से टकराता है,
कोई लहरों में रह जाता है
कोई फ़िर से साहिल पाता है;

देख-देख इन लहरों को अब
मन में लहरें भरता हूँ,
कोई कश्ती लेकर फ़िर से
लहरों में आज उतरता हूँ.

Wednesday, August 09, 2006

सोच और शक्ति

आज अगर मैं झुकता हूँ
सदा-सदा को झुकना होगा,
आज अगर मैं रुकता हूँ
यही मुझे फ़िर रुकना होगा;

मैं तो सिर्फ़ सोच हूँ
वो तो कोई शक्ति है,
मैं श्रधा कोई तेरा
वो तो तेरी भक्ति है;

आज सोच क्या लड़ पायेगा
शक्ति से टकरा जायेगा,
वो टूट-टूट बिखरेगा या
समर-विजेता बन जायेगा;

भविष्य तुझे बतलायेगा
वर्तमान अभी चल रहा है,
सोच को आगे देख बढ़ते
शक्ति आज कोई जल रहा है;

अब तो दोनों टकरायेंगे
अपने-अपने सुर गायेंगे,
हम तो बस दर्शक ठहरे
चुप-चाप देखते जायेंगे.

Sunday, August 06, 2006

मल्हार 06

अटल बिहारी के वैवाहिक विज्ञापन की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत हैं....

मत समझो मेरी उम्र गई
अब भी मुझमें यौवन संचय,
हिंदू तन-मन,हिंदू जीवन
रग-रग हिंदू मेरा परिचय;
आजन्म ब्रह्मचारी,न ही कोई कन्या निहारी
अब चाहिए उसे कोई सुकोमल सुकुमारी,
सुशील,सुंदर और शुद्ध शाकाहारी.
(ह्म्म्म्म्म...बीच की बातें नही लिखूंगा...गंदे-गंदे थे..शर्म आ रही है)
अंत में...
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ-२
शादी करने को आता हूँ-२

Saturday, August 05, 2006

शर-संधान

अर्जुन अब क्या सोच रहे हो
देखो रवि निकल आया है,
वचन-पूर्ण कर लो अपना
ये सब तो मेरी माया है;

केशव का ये देख इशारा
शर-संधान किया अर्जुन ने,
पल-भर में ही जयद्रथ को
मार गिराया भीषण रन में;

आज भी केशव जगत में
अर्जुन निज को तुम पहचानो,
वक्त की करवट को देखो
अपने निज लक्ष्य को जानो;

देख उनका भी इशारा
लक्ष्य को तुम छोड़ दोगे,
वक्त से होकर विवस तुम
कर्म से मुंह मोड़ लोगे;

फ़िर आगे तब कौन लडेगा
अभिमन्यु अभी और मरेंगे,
तेरा अंत नही है सबकुछ
युद्ध यहाँ तो चलते रहेंगे;

अपने मन में सु-विचार भर
निज-विद्या का ध्यान करो,
आज भी किसी कुरुक्षेत्र में
जयद्रथ पर शर-संधान करो।

Thursday, August 03, 2006

बदलते मौसम

मौसम कुछ-कुछ बदल रहा है..

गर्मी तो अब बीत चली है
ताप रवि का लरज रहा है,
लो साथी ये सावन आया
बादल आ-आ गरज रहा है;
मौसम......

शीत का प्रकोप भी अब
धीरे-धीरे टल रहा है,
बागों में कूके ये कोयल
फूल कोई फल रहा है;
मौसम......

इन बदले-बदले मौसम में
जीवन सारा बदल रहा है,
वो देखो अब सूरज ये भी
धीरे-धीरे ढल रहा है;
मौसम......

Wednesday, August 02, 2006

कर्म

भगवन साफ-साफ बतलाएं
क्यों मैं ऐसा युद्ध करूँ,
इस युद्ध से मुझे क्या मिलेगा
क्यों कर में गांडीव धरुं;

सुनकर हँसे श्रीकृष्ण
और बोले अर्जुन से,
हँसी आती है मुझे
तेरे वचन ये सुन के;

कर्म-भूमि समझो इसको
कर्म करने आए हो,
जगत-कल्याण हेतु तुम
धर्म करने आए हो;

कौन अपना, कौन पराया
कैसा मोह ये कैसी माया,
इस जगत को क्या दिए तुम
और क्या तुमने है पाया ?

कर्म करते रहो जगत में
मत सोचो क्या हो रहा है,
कर्म को तुम छोड़ क्यों अब
फल के लिए रो रहा है;

अर्जुन जब तुम कर्म करोगे
तन-मन ह्रदय लगाकर,
फल निश्चित ही पावोगे
ये धरती या वो अम्बर;

अम्बर जब तुम पाते हो
वीर जगत में कहलाते हो,
धरती जब तुम पाते हो
मार्ग मुक्ति का पाते हो।