Tuesday, April 17, 2007

सूर्यग्रहन


एक
दिन जब सूर्यग्रहन आता है

चंद्रमा सूर्य पर जा छाता है,

सूर्य का तो तेज चला गया,

उसको लगा

ये तो अन्याय हो गया.

पर चंद्रमा क्या करता

उसने तो एक ही राह अपनाया है,

ग्रह, नक्षत्र और तारे

जब जो मिला उसपर वो छाया है;

पर आज उसी राह पर सूर्य है

वह बहुत प्रयास करता है,

तरह-तरह के जज्वात भरता है;

कि रूक जाता हूँ

पर उसे बढ़ना पड़ा

सूर्य पर चढ़ना पड़ा.

पर सूर्य ये नही बतलाता है

कहने से भी कतराता है,

कि उसने कब चद्रमा पर न्याय किया है?

कभी पूरा तो कभी आधा प्रकाश दिया है.

पर चंद्रमा चुपचाप रहा

किसी से उसने क्या कहा?

अमावश्या कि रजनी आयी

उसने पर इन्तजार किया था,

पूर्णिमा धरा पर छायी

उसने जग को गुलजार किया था;

इसलिये सूर्य कि शिकायत का अर्थ नही है,

ये सूर्यग्रहन भी अब कोई अनर्थ नही है

Sunday, April 08, 2007

इम्तिहान

सारी दुनिया से तुम दोस्ती कर लो

मुझे तुमसे दोस्ती का हक़ नही क्यों,

पूरी दुनिया से तुझे बेरुखी है

मुझपर तुम्हें कोई शक नही क्यों?

मैं भी उसी जमाने की उपज हूँ

जिस जमाने से सारे लोग डर रहे हैं,

कोई फरिस्ता नही मैं इस धरती पर का

क्यों लोग मुझपर विश्वास कर रहे हैं;

मैंने भी झूठ का सहारा लिया है

कितनो को रास्ते से किनारा कर दिया है,

ये बात अलग है की इन कारणों ने ही

हालत ये नाजुक हमारा कर दिया है;

कब तक हमारा ही इम्तिहान होगा

लोग यहाँ पंक्ति में कब से खड़े हैं,

यहाँ तक पहुँचने भर के लिए ही

ये जाने कितनो से कब तक लड़े हैं;

इम्तेहां ये इंतजार की हो गई अब

नतीजे को अब तो निकलना ही होगा,

तुम्हें चलना होगा खंजर की धार पर

या मुझे इन धारों पर चलना ही होगा।


-Rebel line : a soul want redemption-


Saturday, April 07, 2007

मैं मान गया

बचपन में अपने गाँव में
आम के पेड़ों की छाँव में
मिट्टी पर मैं लोटना चाहता था
गिल्ली-डंडा खेलना चाहता था
तो माँ ने मना किया
कि
तुम तो
अच्छे
बच्चे हो
बिगाड़
जाओगे,
और
मैं मान गया


कुछ बड़ा होकर स्कूल में
मस्ती की भूल में
भागकर सिनेमा देखना चाहता था
गाली-गलौज करना चाहता था
तो शिक्षकों ने मना किया
कि तुम तो
अच्छे बच्चे हो
बिगड़ जाओगे ,
और मैं मान गया ....


कालेज में जब आया
मन मेरा भी भरमाया
किसी ने नही समझाया
……...................

पर मैं तो
अच्छा
बच्चा हूँ
बिगाड़
जाऊंगा
और मैं मान गया …।


-The Superego is related to your childhood-


Friday, April 06, 2007

शुतुरमुर्ग















शिकारी को उसे पहचानना विल्कुल ही आसान है,

इसलिए वह अपनी लम्बी गर्दन से परेशान है;

समझ नही इस दुनिया कि इतना वो नादान है,

सिर्फ वह अपनी लम्बी गर्दन से परेशान है;


एक दिन रेगिस्तान में कोई शिकारी दिख जाता है,

अपनी लम्बी गर्दन वो बालू में छिपाता है;

काया भी विशाल उसकी ये देख नही पाटा है,

सिर्फ वह अपनी लंबी गर्दन ही बचाता है;


उसकी इस हरकत पर शिकारी भी हैरान है,

शिकारी का शिकार होता और भी आसान है;

गलती जो करता वह देता उसपर नही ध्यान है,

सिर्फ़ वह अपनी लम्बी गर्दन से परेशान है।।


-Arrogant is dangerous-