Tuesday, November 06, 2007

मैं और तुम

तुम नदी की चंचल धारा हो
मैं उसी नदी का एक
किनारा ,
तुम तेज
गति से चलती हो
और शांत सा स्वभाव हमारा ;


सागर-
मिलन को उत्सुक तुम
मैं
इंतजार करता बेचारा ,
दिल को छूकर कह देती हो
साथ
ना होगा कभी हमारा ;

तुम तो कोई राह नयी
हो
मैं थका हुआ एक राही हारा,
एक बार
कभी रुक जाओ
थाम सकुं मैं हाथ तुम्हारा