Saturday, March 04, 2006

चकोर की अभिलाषा

देखा चाँद उन्मुक्त गगन में
घूम रही तारों के संग,
मुझसे बेखबर वो मगन में
झूम रही बादल के संग;

पर चाँद से मैंने कहा कब
तारों संग रहती क्यों तुम,
पागल जब ये बादल तब
उन्माद उनमें भरती क्यों तुम;

देख-देख ये दुनिया बोली
चाँद पर भी दाग ये,
पर मैंने ये कब पूछा
क्यों तुझपर है दाग ये??

अरे मैं चकोर ये जानता की
चाँद पा सकता नही हूँ,
पराक्रम नही इन परों में
उड़ पास जा सकता नही हूँ;

मैं चकोर बस चाहता हूँ
चाँद को दीदार करूँ ,
चाँद तुम जैसी भी हो अब
बस तुझे ही प्यार करूँ....
बस तुझे ही प्यार करूँ।