इस बार 'वाणी' में फ्रेशी जनता के लिए जो कविता प्रस्तुतीकरण प्रतियोगिता हुई, उसके निर्णायक चरण में IIT की जिन्दगी पर कविता सुनानी थी. प्रतियोगिता बहुत शानदार रही, मैंने भी एक कविता सुनाई थी, इसे यहाँ लिख रहा हूँ .....
उस हसीना की यादों में पूरी रात जागा था ,
और सुबह होते ही झटपट class भागा था ;
lecture में बैठे-बैठे, मैं सोने लगा था,
अपने आप पर नियंत्रण खोने लगा था ।
मगर प्यारे prof ने,ये होने नहीं दिया
पलभर के लिए भी मुझे सोने नहीं दिया ;
lecture से लौटकर बिस्तर पर सो गया,
उसके हसीं सपनों में फ़िर से खो गया ।
नींद खुली मेरी तो बारह बज रहे थे,
lan-ban होने के लक्षण लग रहे थे;
झटपट में मैंने अपना GPO खोला,
तभी किसी ने PA पर आकर बोला:
" पप्पू का जन्मदिन है, सब बंप्स लगाने आ जाओ,
उसके बाद जितना चाहो, कैंटीन में जाकर खाओ !"
पेट में चूहे कूद रहे थे भूख के कारण
GPO को छोड़ किया रुद्र रूप धारण;
फिर जाकर पप्पू को जमकर लात लगाया,
मस्ती करके कमरे में तीन बजे आया ।
ये IIT की जिन्दगी है,
नींद का नहीं यहाँ ठिकाना;
रोज-रोज ये रात्रि-जागरण,
हे ईश्वर! तू मुझे बचाना । (इनका प्रयोग करना था)
जागते-जागते सोच रहा था कल के नुकसान पर ,
बड़ी मुश्किल से आया एक-एक चीज ध्यान पर;
Quiz छूटा, Lab छूटा, एक class छूट गया,
और 'वाणी' का एक 'मुलाकात' छूट गया ।
रोहित नाराज़ होगा, भावना नाराज़ होगी ,
पता नहीं रश्मिजी मुझसे क्या कहेगी ;
फिर मैंने सोचा कि चुप तो नहीं रहूँगा
मुझसे वे पूछेंगे तो झूठ-मूठ कह दूँगा :
Quiz था ,Lab था, एक presentation था,
एक नहीं तीन-तीन Assignment submission था;
ये IIT की जिन्दगी भी जिन्दगी है क्या?
साँस लेने तक की, फ़ुरसत नहीं यहाँ ; [इस दो पंक्ति का प्रयोग कविता में करना था]
थोडी फ़ुरसत मिली, बस यहीं आ रहा हूँ ;
आप सबको अपनी ये कविता सुना रहा हूँ ।।
Sunday, September 06, 2009
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