Sunday, September 20, 2009

दो कबूतर


मेरे कमरे में बने घोंसले
मुझसे अक्सर कहा करते हैं;
जब हम नहीं रहते कमरे में
दो कबूतर आकर रहते हैं ।

कल
की ही बात थी,
जब मैं अपने कमरे में आया;
दोनों कबूतरों ने अपना पंख फरफराया
और खिड़की से बाहर चला गया ।
मेरी बहुत इच्छा थी,
उन्हें पुकारूं ,उन्हें बुलाऊं;
पल दो पल वे बातें करें
मेरी तन्हाई को दूर करें ।
पर दोनों प्रेम में मतवाले थे,
उनको मेरी फिक्र नहीं थी;
क्या वापस वे आनेवाले थे ,
इसकी भी कोई जिक्र नहीं की।
किंतु इनके घोंसले को
ज्यों का त्यों मैंने छोड़ दिया ;
आज भी जब बाहर निकला
खिड़की खुली ही छोड़ दिया ।।

1 comment:

kundan said...

awesome man!!!
keep it up