Thursday, September 03, 2009

क्यों लक्ष्य बदल जाता है ?










जीवन
-पथ पर चलते-चलते
क्यों अक्सर ये हो जाता है ?
कभी राह बदल जाता है ,
कभी लक्ष्य बदल जाता है

मैंने देखा एक खिलाड़ी
खेल के उस मैदान पर,
गोल-पोस्ट के समीप जो
खड़ा था सीना तानकर ;

खेल बड़ा ही घमासान था
गोल-पोस्ट था सबका निशाना,
पर उसने अपने प्रयास से
रोका गेंद का आना-जाना;

उस खेल का नियम गजब था,
वही गोल-पोस्ट, वही जगह था;
बदल गया पर वही खिलाड़ी
जो खड़ा वहाँ अबतक था

मैंने देखा वही खिलाड़ी
खेल के उसी मैदान पर,
गेंद को लेकर भाग रहा था
गोल-पोस्ट को लक्ष्य मानकर;

जीवन भी एक खेल ही है
और अक्सर ये हो जाता है,
कभी राह बदल जाता है ,
कभी लक्ष्य बदल जाता है