Friday, April 28, 2006

वक्त का रथ

क्त का रथ अनवरत
पथ पर मगर चलता रहा।

सोचा था मैं वक्त बहुत ये
एक पर्वत को पिघला दूँगा,
बनकर भगीरथ इसी धरा पर
एक गंगा कोई बहा दूंगा।

वक्त की परवाह नही की
अपनी धुन में बेखबर था,
चाल वक्त की चपल हैं कितनी
मुझे नहीं मालूम मगर था.

चलते-चलते ठोकर खाया
देखा मैंने पीछे मुड़कर,
वक्त समीप तब मैंने पाया
पीछा करता जो छुप-छुपकर.

हुई वक्त से होड़ हमारी
वक्त को मैंने ललकारा,
ताकत झोंक दी अपनी पूरी
वक्त से फिर भी मैं हारा.

वक्त के आगे विवस हो
हाथ मैं मलता रहा,
वक्त का रथ अनवरत
पथ पर मगर चलता रहा...

2 comments:

Vikash said...

veg waqt ka hai vihangam...chk the meaning.

hulchul apne ander paaya....paayi...?? (well..i'm not sure..chk out)

koshish ki maine bahutere...shayad galat prayog hai.

.....
Mera hindi gyan simit hai...mujhe jo khatka maine bata diya.....agar mai galat hoon to plz point me out. :)

आलोक कुमार said...

hmmmmmmmm...badi muskil hai,
age se aisi bhoolon par najar denge...