हाय रे विधाता
ये तुमने क्या किया
इतनी बहुमूल्य मणि
किसके सिर पर दे दिया
एक तो वह नाग है
दुष्टता की आग है ...
हर फन में उसके
जहर ही जहर है ,
क्रोध में उसके
कहर ही कहर है ;
उसके सिर पर नागमणि
हे विधाता
तु कैसा महादानी ?
सुनकर विधाता घबराये
फिर हौले से मुस्कुराये
वह कोई मणि नही
चमकता पत्थर मात्र है ,
वो तुच्छ नाग ही
जिस तुच्छता का पात्र है ,
वह बहुमूल्य इसलिये है
की उस दुष्ट के पास है ,
दुर्लभ जिसकी आस है ;
मैंने फिर नागमणि की ओर देखा
देखकर ललचाया
फिर सोच मन बहलाया
ये तो बहुमूल्य नाहीं है
शायद !! विधाता ही सही है ...
Wednesday, October 03, 2007
नागमणि
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