जाने क्यों तुमसे मिलने की
आशा कम विश्वास बहुत है।
अपने अन्दर युगों-युगों से
सागर प्यास जगाया था,
जल की कुछ बूंदों को वह
दरिया से आस लगाया था;
दरिया जब पानी लाया तो
प्यासा सागर सोच रहा है,
अब पीने की चाह नहीं है
पानी मेरे पास बहुत है ।
जाने क्यों तुमसे मिलने की
आशा कम विश्वास बहुत है।
जब उषा काल में देरी थी
वो रात बड़ी अँधेरी थी,
उस अन्धकार के कम्बल में
आसमान तब सिमट गया था;
नभ में आयी चांदनी तो
आसमान ये सोच रहा है,
अब चंदा की चाह नहीं है
तारे मेरे पास बहुत हैं ।
जाने क्यों तुमसे मिलने की
आशा कम विश्वास बहुत है।
नील गगन की सीमा पाने
दूर क्षितिज से गले मिलाने,
या फिर किसी शिखर को पाने
क्या उसकी मंजिल वही जाने ;
वो आसमान में थका पखेरू
शिखर देख अब सोच रहा है,
अब उड़ने की चाह नहीं है
मंजिल मेरे पास बहुत है ।
जाने क्यों तुमसे मिलने की
आशा कम विश्वास बहुत है।