केशव बनकर तुम अब आओ
अर्जुन मुझको बनना है,
गीता मर्म मुझे समझाओ
कुरुभूमि में लड़ना है;
गीता-ग्यान को पाकर अब
धनुष हाथ को धरना होगा,
अर्जुन मुझको बनना होगा।
इर्द-गिर्द हैं चक्रव्यूह
धर्मराज का मन व्याकुल,
जयद्रथ के तलवारों से
अभिमन्यु मरने को आतुर;
हे स्यंदन के सारथि अब
उसी जगह को चलना होगा,
अर्जुन मुझको बनना होगा ।
दुह्शासन के हाथों ने
पांचाली का केश उजाडा,
दानवीर भी द्रुपद-सुता को
वेश्या कहकर आज पुकारा;
लाज बचालो द्रुपद-सुता की
मुझको अभी संवरना होगा;
अर्जुन मुझको बनना होगा ।
कर्ण यहाँ कितने भी हों
धरती मेरी मदद करेगी,
भीष्म-ड्रोन जितने भी हों
अर्थी उनकी यहीं सजेगी;
दुर्योधन का दमन मिटाने
तात-गुरु से लड़ना होगा;
अर्जुन मुझको बनना होगा...
अर्जुन मुझको बनना होगा.
और अंत में..........
मादक मौसम आने भी दो,
उन्मादों को छाने भी दो,
कोई स्वर्गिक सुकुमारी
उर्वसी अब आने भी दो;
भोगी नही मैं एक तपस्वी
खुलकर आज ये कहना होगा,
अर्जुन मुझको बनना होगा ॥
Wednesday, July 26, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
oyee ey main hoon Lost soul..mast poem hai ..par karan was teh best after krishn In mahabharat..krishn ke bad me karan aur fir bheeshm pitammah..arjun to bahut late hai bahi...!!1
hmmm...par mujhe arjun achchha lagne laga :)))
kaun sahi hai kaun galt
nahin hai yeh prashan mera
maar kar karn ko
kya kar paya arjun jagat main savera
aaj bhi toh
aaj bhi toh ...
chaaya hua hai wohi andhera
prashna arjun-karn nahi hai...
dharm-adharm ka prashna ye.
ghar-ghar ab duryodhan hai
kaise arjun kare savera,
arjun bankar tum dekho tab
mit jaayega ye andhera.
are aakash bhai...achchhi tarah se le lete ho :D:D
Post a Comment