Wednesday, August 02, 2006

कर्म

भगवन साफ-साफ बतलाएं
क्यों मैं ऐसा युद्ध करूँ,
इस युद्ध से मुझे क्या मिलेगा
क्यों कर में गांडीव धरुं;

सुनकर हँसे श्रीकृष्ण
और बोले अर्जुन से,
हँसी आती है मुझे
तेरे वचन ये सुन के;

कर्म-भूमि समझो इसको
कर्म करने आए हो,
जगत-कल्याण हेतु तुम
धर्म करने आए हो;

कौन अपना, कौन पराया
कैसा मोह ये कैसी माया,
इस जगत को क्या दिए तुम
और क्या तुमने है पाया ?

कर्म करते रहो जगत में
मत सोचो क्या हो रहा है,
कर्म को तुम छोड़ क्यों अब
फल के लिए रो रहा है;

अर्जुन जब तुम कर्म करोगे
तन-मन ह्रदय लगाकर,
फल निश्चित ही पावोगे
ये धरती या वो अम्बर;

अम्बर जब तुम पाते हो
वीर जगत में कहलाते हो,
धरती जब तुम पाते हो
मार्ग मुक्ति का पाते हो।

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