Saturday, August 19, 2006

सूर्यग्रहण

एक दिन अचानक
चंद्रमा मौका पाता है
शक्ति का जोर दिखाता है,
पल भर में ही कोशिश कर
सूर्य के उपर छा जाता है;

अब सूर्य बेचारा क्या करेगा
किससे अपनी बात कहेगा,

वो चाँद कोई इस नभ का है
रात का राजा कहलाता है,
तारों के बीच संवर करके
दुनिया का मन बहलाता है;

सूर्य के बेदाग़ तेज से
दुनिया सदा जली रहती है,
चाँद पर तो दाग भी ये
दुनिया फिर भी खुश रहती है;

सूरज ने तो जल-तपकर भी
चाँद को प्रकाश दिया,
चाँद न जाने किस कारण
उस सूरज का उपहास किया;

समस्या तो ये बहुत बड़ी है
सूर्यग्रहण कोई विकट घड़ी है।

2 comments:

Anonymous said...

I don't understand one word you write but i love poésie and i say you "good luke" for your "oeuvre"

Denis

somewhère in Francia

blog: hombredenada.blogspot.com

आलोक कुमार said...

mere bhai...nahi samajh rahe ho to pain kyun maar rahe ho...