शरद पूर्णिमा की रात ये
चाँद अपने यौवन पर है,
ओस गिरे हैं,सुमन खिले हैं
जगमग-जगमग डगर-डगर है,
सरिता की ये शांत लहर है,
साहिल पर बैठा कोई चकोर
चाँद देख मन बहलाता है,
चाँद भी ख़ुद पर इतराता है....
अमावस्या की रात ये
अपने गगन में चाँद कहाँ है
ओस कहाँ हैं,सुमन कहाँ है,
अन्धकार हर डगर-डगर है
सरिता में भी कहाँ लहर है,
साहिल पर बैठा वही चकोर
आंसू लाख ये बरसाता है,
चाँद भी ख़ुद पर शर्माता है ....
दिन बदले, बदला नही मौसम
और नज़रिया बदल रहा है
बदल रहा है,बदल रहा है....
...ek aur nazzariya...a sophie production....
Thursday, August 31, 2006
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2 comments:
hmmm
nice comparison bw amavsya and purnima..nice one
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