Friday, September 15, 2006

भूचाल

-और खेल खत्म होता है
खत्म होता है कोई जुनून,
मिलती है तो सिर्फ़ बर्बादी
पर बरबाद कौन होता है
कौन हँसता, कौन रोता है;

इस खेल में किसे क्या मिला
किसको शिकवा है किसे गिला,
सागर में तो भूचालों का
चलता रहता है कोई सिलसिला;

सागर शांत हो जाता है
लहरें थम सी जाती है,
पर सोचो उस बस्ती का भी
सदा-सदा जो मिट जाती है;

लहरों का सम्मान यही है
ये बस्ती कहीं मिटाता है,
सागर का अपमान यही है
कोई कश्ती नही डुबाता है;

पर अपमानों को सहकर भी
सागर क्या कर पाता है,
फिर लहरें कोई बलखाती है
भूचाल नया आ जाता है।

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