Wednesday, October 04, 2006

दिल का दर्द

आज कुछ लिखना चाहता हूँ
पर क्या लिखूं
किसकी सुनूँ
दिल की या दिमाग की
धोका तो हर कोई देता है
दिल भी धोखेबाज़ होता है.
कभी तुम दिल की सुने हो
क्या सपने मन में बुने हो?
अब सपना क्या है
क्या कोई जल का श्रोत
या फ़िर....(ह्म्म्म्म नींद आ रही है मुझे )
नहीं आज कुछ लिख ता हूँ ....

हाँ तो सपना क्या है
क्या कोई शीशमहल
जो पल में चकनाचूर हो जाता है,
या वो बालू के घरौंदे
जिसे हिलोरें जब चाहे दूर ले जाता है.
ह्म्म्म...कोर्रेक्ट...अब...अब.. उन्न्न्न्न्न्न्न..
हाँ बालू के घरौंदे टूट जाते हैं
रेतों की दीवार बिखर जाता है,
पर एक विश्वास निखर जाता है,
क्या.....
कि दिल कोई समंदर की रेत नहीं होता
इसपर लिखा कुछ अपना निशां नहीं खोता,
जितनी कोशिश करो तुम इसे मिटाने की
जख्म उतना ही दर्द पैदा करता है,
दिल फिर भी जिन्दा रहता है, नहीं मरता है।

No comments: