किसी ने हवाओं को रोका था
फिर हवा उसे रोक रहे थे,
किसी ने फिजाओं को टोका था
फिर फिजा उसे टोक रहे थे...
पर हवाएं तो रूकती नहीं
फिर वो क्यूँ रुक गई थी,
या किसी आत्म-तेज के
आगे झुक गई थी;
पर उसने रोका तो था
कोई स्वार्थ तो जरूर होगा,
क्यूंकि हर कोई यहाँ स्वार्थ में अँधा है,
कोई पवित्र नहीं यहाँ सब गन्दा है;
तो फ़िर उसका स्वार्थ क्या होगा
शायद यही कि
और लोग घुट-घुट मरे
सारे टूट-टूट गिरे ?
पर ऐसा नही हुआ होगा
और लोग आ नहीं सके होंगे
क्यूंकि हवाओं ने ख़ुद को रोक दिया था,
वे वापस जा नहीं सके होगे
क्यूंकि हवाओं ने उस को रोक दिया होगा;
उसे ही घुटना पड़ा होगा
उसे ही टूटना पड़ा होगा,
और अब तक टूट चुका होगा;
पर अब खुश होगा शायद
की अब हवा नही रुकेंगे
और वह भी उठ सकेगा
एक साँस के लिए
वेदना का अहसास लिए.
Wednesday, December 06, 2006
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