मन में उभर रही हो
तन पे संवर रही हो
पता नहीं क्यूँ तुम ही
चिंतन में ठहर रही हो,
अब तन सुलग रहा है
अब मन सुलग रहा है
साथ तेरा पाकर मेरा
जीवन सुलग रहा है,
किस वक्त का इंतजार है
किस बात की तकरार है
जो दिल है तेरा कह रहा
क्यूँ तुझे इनकार है...
ह्म्म्म्म्म...
Friday, December 29, 2006
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