Wednesday, December 20, 2006

पतझड़ का एक पेड़

देखा मैंने पतझड़
पतझड़ का एक पेड़,
उस पर न ही पत्ते थे
न ही मधु के छत्ते थे,
मगर वह खड़ा था
अकड़ कर अडा था,
मैं देखता रहा
देख सोचता रहा
कि पेड़ क्यूँ खड़ा है,
अकड़ क्यूँ अडा है...

समयचक्र चलते रहे
पर हम आखें मलते रहे,
पेड़ पर पत्ते नहीं आए
पंछी नहीं चाह्चहाये,
मगर पेड़ खड़ा था,
अजीब नज़ारा था...

वक्त ने बदली करवटें
मधुमास धरा पर छा गया,
मैंने देखा पेड़ पर
पंखुडियां कहीं से आ गया,
पेड़ तब भी खड़ा था
पर कुछ हरा-भरा था,
धीरे-धीरे पत्ते आने लगे
पंछी चहचहाने लगे,
छाया धरती पर छाने लगे
मोर-पपीहे नाचने-गाने लगे,
मगर पेड़ खड़ा था
अजीब नज़ारा था...
मैंने देखा
पेड़ का धैर्य
उसकी सहनशक्ति,
उसका साहस
उसकी हिम्मत
अंत में किस्मत;
मैं समझ गया
पेड़ क्यूँ खड़ा था
अकड़ क्यूँ अडा था.....

2 comments:

Vikash said...

"chhaaya dharti par chhane lage"

"pankhudiyaan kahiin se aa gaya"

kyun bhaai? ek kavitaa me hindi ki taang do baar tod di?

kundan said...

gr8 job..