Wednesday, December 06, 2006

पुल का दर्द

एक छोटा सा गाँव
उसमें एक नदी
जिसपर एक पुल थी.
पुल नया-नया तैयार था
शायद इमानदार ठेकेदार था;
लोग उसपर चलते थे
देख उसे मचलते थे,
एक दिन उसपर से
एक भारी वाहन गुजर गया,
पुल का तो भाग्य ही संवर गया,
उसने पूरा दर्द चुपचाप सहा,
वाहन उसपर से गुजरा है
इसी खुशी में मग्न रहा;
और उधर वाहन
आते वक्त तो पुल को देखा
मुस्कुराया भी
और उसपर से चला गया,
मुड़कर देखा भी नही
की पुल को कितना दर्द होता है,
उसे क्या पता कि पुल भी रोता है;
अब तो वह वाहन
बार-बार आता था
फ़िर वापस जाता था,
हर बार दर्द छोड़ जाता था;
पुल बार-बार के दर्द को सह नही पाया
उसी तरह नया और मजबूत रह नही पाया,
उसका एक हिस्सा टूट गया
वाहन के काम का नहीं रहा,
लोग अब भी आते-जाते थे
कभी प्रशासन को कोसते थे,
कभी पुल देख मन मसोसते थे;
वाहन मगर फ़िर आया
पुल को उसने टूटा पाया,
उसे बहुत गुस्सा आया
उसने पुल को भी कोसा
प्रशासन को भी कोसा,
उसे वापस मुड़ना पड़ा
किसी और पुल की तलास में
मंजिल प्राप्ति की आस में...

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