Tuesday, May 15, 2007

अंधकार










मूझे डर लगता है अंधकार से
किसी अपशकुन के विचार से,
शायद इसलिये देता हूँ प्रहार कर
हर जगह किसी अन्धकार पर ।

हम प्रहार उसी पर करते हैं
जिनसे हम किसी तरह डरते हैं ,
कोई हम पर प्रहार करता है
शायद हमसे वह डरता है ।

हम अन्धकार से डरते हैं
अन्धकार हमसे डरता होगा ,
हम अन्धकार से लड़ते हैं
अन्धकार हमसे लड़ता होगा ।

अन्धकार में जीने की आदत नही
उजाले की कोशिश में रहता निरंतर ,
तमसो माँ ज्योतिर्गमय जपता
आता रहा हूँ युग और युगान्तर ।

आओ अन्धकार मैं ललकारता हूँ
डरता हूँ मगर मैं मजबूर हूँ ,
कितना भी कमजोर कर दे मुझे
ताक़त से अब भी मैं भरपूर हूँ

- Possessed by some brutal Superego-who speak here-it seems so-That time I was in major depression and write these lines-

4 comments:

Psychotic Philosopher said...

तमसो माँ ज्योतिर्गमय जपता
आता रहा हूँ युग और युगान्तर !!!


bahut hi sahee line likhe ho..aur prahaar aur takrar wali baat bhi sahee likhe ho aur sabse sahee to parker ka pic hai..fighting with tam!! :-)

Alok said...

hmmm...pic bilkul chun kar diye hain...ha ha ha.

Vikash said...

हम अन्धकार से डरते हैं
अन्धकार हमसे डरता होगा ,
हम अन्धकार से लड़ते हैं
अन्धकार हमसे लड़ता होगा ।

achhi line hai.
kavita likhte waqt vartani ka khayaal rakhoge to padhne me maaj aayega.

आलोक कुमार said...

achchhi line ko achchhe se samajh lena chaahiye ;)