Tuesday, April 17, 2007

सूर्यग्रहन


एक
दिन जब सूर्यग्रहन आता है

चंद्रमा सूर्य पर जा छाता है,

सूर्य का तो तेज चला गया,

उसको लगा

ये तो अन्याय हो गया.

पर चंद्रमा क्या करता

उसने तो एक ही राह अपनाया है,

ग्रह, नक्षत्र और तारे

जब जो मिला उसपर वो छाया है;

पर आज उसी राह पर सूर्य है

वह बहुत प्रयास करता है,

तरह-तरह के जज्वात भरता है;

कि रूक जाता हूँ

पर उसे बढ़ना पड़ा

सूर्य पर चढ़ना पड़ा.

पर सूर्य ये नही बतलाता है

कहने से भी कतराता है,

कि उसने कब चद्रमा पर न्याय किया है?

कभी पूरा तो कभी आधा प्रकाश दिया है.

पर चंद्रमा चुपचाप रहा

किसी से उसने क्या कहा?

अमावश्या कि रजनी आयी

उसने पर इन्तजार किया था,

पूर्णिमा धरा पर छायी

उसने जग को गुलजार किया था;

इसलिये सूर्य कि शिकायत का अर्थ नही है,

ये सूर्यग्रहन भी अब कोई अनर्थ नही है

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