एक दिन जब सूर्यग्रहन आता है
चंद्रमा सूर्य पर जा छाता है,
सूर्य का तो तेज चला
उसको लगा
ये तो अन्याय हो
पर चंद्रमा क्या करता
उसने तो एक ही राह अपनाया है,
ग्रह, नक्षत्र और तारे
जब जो मिला उसपर वो छाया है;
पर आज उसी राह पर सूर्य है
वह बहुत प्रयास करता है,
तरह-तरह के जज्वात भरता है;
कि रूक जाता हूँ
पर उसे बढ़ना पड़ा
सूर्य पर चढ़ना पड़ा.
पर सूर्य ये नही बतलाता है
कहने से भी कतराता है,
कि उसने कब चद्रमा पर न्याय किया है?
कभी पूरा तो कभी आधा प्रकाश दिया है.
पर चंद्रमा चुपचाप रहाअमावश्या कि रजनी आयी
उसने पर इन्तजार किया था,
पूर्णिमा धरा पर छायी
उसने जग को गुलजार किया था;
इसलिये सूर्य कि शिकायत का अर्थ नही है,
ये सूर्यग्रहन भी अब कोई अनर्थ नही है॥
No comments:
Post a Comment