मुझे तुमसे दोस्ती का हक़ नही क्यों,
पूरी दुनिया से तुझे बेरुखी है
मुझपर तुम्हें कोई शक नही क्यों?
मैं भी उसी जमाने की उपज हूँ
जिस जमाने से सारे लोग डर रहे हैं,
कोई फरिस्ता नही मैं इस धरती पर का
क्यों लोग मुझपर विश्वास कर रहे हैं;
कितनो को रास्ते से किनारा कर दिया है,
ये बात अलग है की इन कारणों ने ही
हालत ये नाजुक हमारा कर दिया है;
कब तक हमारा ही इम्तिहान होगा
लोग यहाँ पंक्ति में कब से खड़े हैं,
यहाँ तक पहुँचने भर के लिए ही
ये न जाने कितनो से कब तक लड़े हैं;
इम्तेहां ये इंतजार की हो गई अब
नतीजे को अब तो निकलना ही होगा,
तुम्हें चलना होगा खंजर की धार पर
या मुझे इन धारों पर चलना ही होगा।
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