Sunday, June 24, 2007

वेदना और बहुव्यक्तितव












किसी मन में गहरी वेदना है
अगर तीव्र उसकी संवेदना है,
तो कभी-कभी सोचता हूँ
उसका क्या हाल होता होगा
कैसे वह गम पीता होगा
कैसे जीवन जीता होगा ?

क्या उसके ह्रदय में घुटन
का अहसास नही होता होगा?
क्या उसका मन नही रोता होगा ?

शायद होता ही होगा उसे
अनेक दुखों का अहसास ,
विकल होता होगा ह्रदय
रूकती रहती होगी सांस ;

मगर साँसे रूक सकती नही
उसे जीवन में विश्वास है ,
अगर दुःख उसे अनायास है
तो शायद दवा भी पास है ;

जो समस्यायों से जूझता होगा
उसी के पास समाधान होता होगा,
उस व्यक्ति के अन्दर ही एक
अलग व्यक्तित्व का निर्माण होता होगा,
उस व्यक्ति को अगर ये ज्ञान नही
तो वो बिल्कुल परेशान होता होगा ;

क्यूंकि वो अलग व्यक्तित्व ही
दुःखों का समाधान करता होगा ,
जिसका प्रतिकूल सा असर
उस व्यक्ति पर भी पड़ता होगा ;

आज इस निराशा के दौड़ में
सब के सब ही लोग हतास हैं,
यही एक वजह है कि आज
बहुव्यक्तित्व सबके पास है ॥


-Related with Freud theory of psychology-

3 comments:

Vikash said...

कविता तो अच्छी है लेकिन वर्तनी कि अनेकानेक अशुद्धियों के कारण भद्दी लग रही है।

Vikash said...

*वर्तनी की :D

आलोक कुमार said...

bhaawnaaon se hi kaam chalaaya jaaye...haan ye vartani ki shiksha vikash aapse hi mujhe leni padegi :))