Saturday, August 18, 2007
याद
उस मौसम की मस्ती में
हौले हौले तुम हंसती थी
उन यादों को भुला गया
तुमको भूल नही पाया ;
सावन की रिम-झिम बूंदों ने
तेरे पायल की छन-छन को
स्मृति-पटल पर फ़िर लाया
तुमको भूल नही पाया ;
बादल से ये नैन तुम्हारे
चंचल मन सुन्दर चितवन
कंचन सी तेरी वो काया
तुमको भूल नही पाया ;
इस दुनिया से दूर कही
सपनो को जहाँ भय नही
स्वप्न मूझे वहीं ले आया
तुमको भूल नही पाया ॥
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3 comments:
Kavita me jab vyakti apni bhawanayen vyakt kar deta hai to wah awishmarniya ho jati hai
Nissandeh nimnakit panktiyaan aise bhaav deti hai ki man sach-much yaadon me kho jata hai
उन यादों को भुला गया
तुमको भूल नही पाया ;
bahut dino baad aisi kavita padhne ko mili.
adbhut......
alok ji aapki kavita man mein ek meethee
si anubhuti ke saman hai.....
सही जा रहे हो बालक लोग …
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