Monday, October 26, 2009

वैरागी जीवन

इस वैरागी जीवन में
एक राग सुना दो
तुम आकर,
मेरे मन की उलझन के
कोई राज बता दो
तुम आकर;

मेरा मन कटी पतंग सा
भटक गया आसमान में,
इसकी कोई डोर किधर
एक बार बता दो
तुम आकर;

मेरे सपनो की नौकाएँ
भटक गयी सभी दिशाएँ,
इन नौकाओं में  सुन्दर
पतवार लगा दो
तुम आकर;


इस वैरागी जीवन में
एक राग सुना दो
तुम आकर,
मेरे मन की उलझन के
कोई राज बता दो
तुम आकर।

Monday, October 19, 2009

इस बार की दिवाली


इस
बार की दिवाली
आँसुओंवाली थी ;
इन आंसुओं में गम नहीं था
इन आंसुओं में दर्द नहीं था
इन आंसुओं में यादें थी
बस यादें थी
और यादें थी ।
बचपन की यादें थी
जब दिवाली के त्यौहार पर
मन में उल्लास इस तरह समाता था
कि मन का कोना-कोना जगमगाता था;
मन में पटाखे भी चलते थे
मन में फुलझडी भी चलती थी;
कभी मन चक्री की तरह नाचता था
कभी मन अनार की तरह खिलखिलाता था ;

आज मन में नहीं
बाहर पटाखे चल रहे हैं
बाहर फुलझडी चल रही है;
इसे देखकर मन नाचता नहीं है
खिलखिलाता नहीं है ;
दिवाली के धमाकों में खो गया हूँ,
अब मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ


Sunday, October 04, 2009

मेरी इच्छाएं


मेरे मन में आती है
इच्छाएँ बार-बार,
इच्छाओं का क्या करें
इन्हें खत्म कैसे करें ।
सोचता रहा मैं
रात भर जागकर
मगर कुछ मिला नहीं
इसके जवाब में,
जो मुझे शांत करता
और मेरे मन को भी
जिसमें आती-जाती है
इच्छाएँ बार-बार;
मानो पूनम की रात है
और मन समुद्र बनकर
ज्वार-भाटा खेल रहा है ;
और इच्छा लहरें बनकर
उठती और गिरती है;


यहीं कहीं लहरों में
फंसा हुआ एक आदमी
अनियंत्रित है,
बेजान है, बेचारा है;
किसी पुतले की तरह
जिसे इच्छा की लहरें
कभी खींचती है तो
कभी धक्के मारती है;

इन्हीं धक्कों को
सहता हुआ वह आदमी
इन लहरों के वश में है;
इनसे बचने के लिए
वह कर रहा इंतजार
किसी दूसरी लहर का;
कौन सी लहर
किनारा पहुंचायेगा
उसे नहीं पता है;
इसीलिए वह बेचारा
लहरों से धक्के खाता है,
और ये बतलाता है;
इच्छा को खत्म करने की
इच्छा भी एक इच्छा है ।।