Monday, October 19, 2009

इस बार की दिवाली


इस
बार की दिवाली
आँसुओंवाली थी ;
इन आंसुओं में गम नहीं था
इन आंसुओं में दर्द नहीं था
इन आंसुओं में यादें थी
बस यादें थी
और यादें थी ।
बचपन की यादें थी
जब दिवाली के त्यौहार पर
मन में उल्लास इस तरह समाता था
कि मन का कोना-कोना जगमगाता था;
मन में पटाखे भी चलते थे
मन में फुलझडी भी चलती थी;
कभी मन चक्री की तरह नाचता था
कभी मन अनार की तरह खिलखिलाता था ;

आज मन में नहीं
बाहर पटाखे चल रहे हैं
बाहर फुलझडी चल रही है;
इसे देखकर मन नाचता नहीं है
खिलखिलाता नहीं है ;
दिवाली के धमाकों में खो गया हूँ,
अब मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ


1 comment:

kundan said...

acha laga.....keep it up!!!