Monday, May 01, 2006

कुछ तुम कह दो कुछ मैं कह दूँ

हम दूर-दूर हुए तो क्या
दिल को निकट तो आने दो,
मन के कोमल अहसासों को
सात सुरों में गाने दो।

अहसासों के भी कुछ सुन लो
कुछ तुम समझो,कुछ मैं समझूँ।

देखो मांगे क्या मेघ से मोर
चंदा से क्या चाहे चकोर,
किस निज हित हेतु ये पतंगे
लपकते अग्नि-शिखा की ओर।

अरे प्रश्नों में ख़ुद मत उलझो
कुछ तुम सोचो कुछ मैं सोचूं।

लाख-लाख मन प्रश्न पूछकर
उत्तर एक ही पाता है,
दृष्टि की दीवार भेदकर
दिल तक पहुँचा जाता है।

इन पलकों को झुकने मत दो
कुछ तुम देखो कुछ मैं देखूं।

पतझड़ तो पलभर आते हैं
फ़िर मधुवन छाता जाता है,
चातक की व्याकुलता देखकर
मेघ भी पानी बरसाता है।

अब मौसम से ही सीख तो लो
कुछ तुम बदलो कुछ मैं बदलूं।

दिलवालों के दुनिया में भी
दिल ये तनहा-तनहा है,
सदियों से अकेले में ही
कट्टा हर लम्हा-लम्हा है।


अब संकोचों के परदे हटा दो
कुछ तुम कह दो कुछ मैं कह दूँ।

3 comments:

Vikash said...

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