Saturday, May 27, 2006

प्रेम और समर्पण

्रेम नही समझो प्रियतम
ये तो मेरा समर्पण है.

ख़ुद ही ख़ुद में भटका सा
जग की नजरों में खटका सा
हो जैसे कोई फल रसाल
किसी तरु-दाल पर लटका सा;

.......
.......
....... (censored)
.......

देख तुम्हारी आतुरता को
बादल मुझपर जल बरसाया,
मौसम अपना राग सुनाया
तेज पवन भी जोर चलाया;

देख नजारे कुदरत के ये
उचित विचार किया तरुवर ने,
अलग मुझे कर अपनी डाल से
डाल दिया मुझे तेरे कर में;

ये तो उन तरुओं की ओरसे
तुझको मेरा अर्पण है,
प्रेम नही समझो प्रियतम
ये तो मेरा समर्पण है।

4 comments:

Vikash said...

rasaal aur taru-daal tujhe bahut pasand hai kya...? :P

आलोक कुमार said...

bachhan ka shishya hoon...unhone pyaala aur haala se hi kitna kuchh likh diya tha :)))

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