खेतों में, खलिहानों में,
पीपल पेड़ों की छावों में,
रहीमा-रमुआ की नावों में
घूम रहा मैं गावों में;
जहा अभी चुनावी हलचल
बादल बनकर गहराया है,
जनता में जनमत की लहर
सागर के सम लहराया है;
आरक्षण की अद्भुत महिमा
अपना भी रंग जमाया है,
पंचायत की आधी सत्ता
सबला के हाथ थमाया है;
वो सबला जिनके चेहरे पर
अबतक थी लज्जा की लाली,
निकल पड़ी घर के बाहर
कहकर जय अम्बा जय काली;
फ़िर भी दिखता है कुछ-कुछ
जंजीरें इन पावों में,
उम्मीद प्रबल पर बदलेगी
तस्वीरें इन गावों में.
Sunday, May 28, 2006
शर्त....the bet
चलो तुम शर्त लगाओ...
कहना है आसान मगर
करना मुश्किल है,
जरा करके दिखलाओ,
चलो तुम शर्त लगाओ;
सुनकर मैंने सोचा कुछ-कुछ
तब मैंने बोला ये सचमुच...
धैर्य नही अब और धारूंगा
बातों से ही नही लडूंगा,
तुम्हे करके दिखलाते हैं
चलो हम शर्त लगाते हैं;
सुनकर उत्तेजित मन उसका
बोला- mr. one minute just,
how can u talk with a girl
try to learn english first;
don't take it very easy
don't think u r great,
think a while,
take a breath,
this isn't a simple bet.
मेरा ज़मीर अंदर से डोला
मुंह ये खोला,फ़िर से बोला...
तुम्हें करके दिखलाते हैं
चलो हम शर्त लगाते हैं.
कहना है आसान मगर
करना मुश्किल है,
जरा करके दिखलाओ,
चलो तुम शर्त लगाओ;
सुनकर मैंने सोचा कुछ-कुछ
तब मैंने बोला ये सचमुच...
धैर्य नही अब और धारूंगा
बातों से ही नही लडूंगा,
तुम्हे करके दिखलाते हैं
चलो हम शर्त लगाते हैं;
सुनकर उत्तेजित मन उसका
बोला- mr. one minute just,
how can u talk with a girl
try to learn english first;
don't take it very easy
don't think u r great,
think a while,
take a breath,
this isn't a simple bet.
मेरा ज़मीर अंदर से डोला
मुंह ये खोला,फ़िर से बोला...
तुम्हें करके दिखलाते हैं
चलो हम शर्त लगाते हैं.
Saturday, May 27, 2006
प्रेम और समर्पण
प्रेम नही समझो प्रियतम
ये तो मेरा समर्पण है.
ख़ुद ही ख़ुद में भटका सा
जग की नजरों में खटका सा
हो जैसे कोई फल रसाल
किसी तरु-दाल पर लटका सा;
.......
.......
....... (censored)
.......
देख तुम्हारी आतुरता को
बादल मुझपर जल बरसाया,
मौसम अपना राग सुनाया
तेज पवन भी जोर चलाया;
देख नजारे कुदरत के ये
उचित विचार किया तरुवर ने,
अलग मुझे कर अपनी डाल से
डाल दिया मुझे तेरे कर में;
ये तो उन तरुओं की ओरसे
तुझको मेरा अर्पण है,
प्रेम नही समझो प्रियतम
ये तो मेरा समर्पण है।
ये तो मेरा समर्पण है.
ख़ुद ही ख़ुद में भटका सा
जग की नजरों में खटका सा
हो जैसे कोई फल रसाल
किसी तरु-दाल पर लटका सा;
.......
.......
....... (censored)
.......
देख तुम्हारी आतुरता को
बादल मुझपर जल बरसाया,
मौसम अपना राग सुनाया
तेज पवन भी जोर चलाया;
देख नजारे कुदरत के ये
उचित विचार किया तरुवर ने,
अलग मुझे कर अपनी डाल से
डाल दिया मुझे तेरे कर में;
ये तो उन तरुओं की ओरसे
तुझको मेरा अर्पण है,
प्रेम नही समझो प्रियतम
ये तो मेरा समर्पण है।
Monday, May 01, 2006
कुछ तुम कह दो कुछ मैं कह दूँ
हम दूर-दूर हुए तो क्या
दिल को निकट तो आने दो,
मन के कोमल अहसासों को
सात सुरों में गाने दो।
अहसासों के भी कुछ सुन लो
कुछ तुम समझो,कुछ मैं समझूँ।
देखो मांगे क्या मेघ से मोर
चंदा से क्या चाहे चकोर,
किस निज हित हेतु ये पतंगे
लपकते अग्नि-शिखा की ओर।
अरे प्रश्नों में ख़ुद मत उलझो
कुछ तुम सोचो कुछ मैं सोचूं।
लाख-लाख मन प्रश्न पूछकर
उत्तर एक ही पाता है,
दृष्टि की दीवार भेदकर
दिल तक पहुँचा जाता है।
इन पलकों को झुकने मत दो
कुछ तुम देखो कुछ मैं देखूं।
पतझड़ तो पलभर आते हैं
फ़िर मधुवन छाता जाता है,
चातक की व्याकुलता देखकर
मेघ भी पानी बरसाता है।
अब मौसम से ही सीख तो लो
कुछ तुम बदलो कुछ मैं बदलूं।
दिलवालों के दुनिया में भी
दिल ये तनहा-तनहा है,
सदियों से अकेले में ही
कट्टा हर लम्हा-लम्हा है।
अब संकोचों के परदे हटा दो
कुछ तुम कह दो कुछ मैं कह दूँ।
दिल को निकट तो आने दो,
मन के कोमल अहसासों को
सात सुरों में गाने दो।
अहसासों के भी कुछ सुन लो
कुछ तुम समझो,कुछ मैं समझूँ।
देखो मांगे क्या मेघ से मोर
चंदा से क्या चाहे चकोर,
किस निज हित हेतु ये पतंगे
लपकते अग्नि-शिखा की ओर।
अरे प्रश्नों में ख़ुद मत उलझो
कुछ तुम सोचो कुछ मैं सोचूं।
लाख-लाख मन प्रश्न पूछकर
उत्तर एक ही पाता है,
दृष्टि की दीवार भेदकर
दिल तक पहुँचा जाता है।
इन पलकों को झुकने मत दो
कुछ तुम देखो कुछ मैं देखूं।
पतझड़ तो पलभर आते हैं
फ़िर मधुवन छाता जाता है,
चातक की व्याकुलता देखकर
मेघ भी पानी बरसाता है।
अब मौसम से ही सीख तो लो
कुछ तुम बदलो कुछ मैं बदलूं।
दिलवालों के दुनिया में भी
दिल ये तनहा-तनहा है,
सदियों से अकेले में ही
कट्टा हर लम्हा-लम्हा है।
अब संकोचों के परदे हटा दो
कुछ तुम कह दो कुछ मैं कह दूँ।
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