Friday, March 30, 2007

कस्तूरी

कस्तूरी कि भनक

जब उस मृग को लगती है,

वो बेचैन हो उठता है,

इधर-उधर नज़र दौड़ाता है

पर वह कुछ नहीं पाता है,

तरुओं में ढूँढता है

उनके पत्तों में ढूँढता है,

डाली-डाली में ढूँढता है,

फूलों कि क्यारी में ढूँढता है;

उसके इस बाबलापन पर

फिजायें मुस्कुराती है,

हवाएं सनसनाती है,

पर कोई कुछ नहीं बताती है;


मृग और परेशान होता है

पूर्णरुपेन चैन खोता है,

पर्वतों को छलान्गता है

झरनों में फांदता है,

समंदर को सोचता है

सितारों में खोजता है;

उसके इस नादानी पर

बादल खिलखिलाता है

बिजली आँखें मटकाती है

पर कोई कुछ नहीं बताती है;


एक दिन फिर थक जाता है

आराम करते हुए पाता है

कस्तूरी कि गंध तो यहीं है

पर आस-पास कुछ भी नही है;

वह अब भी परेशान है

दुनिया से हैरान है

अब तो कोई उसे बता दे

उसी के पास कस्तूरी है,

जिसके लिए तय किये उसने

लंबी-लंबी दूरी है।।


-The greatest fear of you lies in your inside-

कठपुतली

एक धागे से बंधा

कोई कठपुतली

करतब दिखाते हुए,

गलती से यही समझ बैठा

कि वह कारामती है;

कितनी बार गिरता है

गिरकर फ़िर उठता है

और करतब दिखाता है

पर समझ नही पाता है

कि ये तो उनका प्रयास है

इनकी डोर जिसके पास है;


आख़िर वह थक जाता है

फ़िर भी करतब करते हुए

ख़ुद को वह पाता है,

तब उसे समझ आता है

कि वो किसी डोर से बंधा है

जो किसी और के पास है

ये उन्ही का प्रयास है।।

-every human bound by nature-


बंधन

कृत्रिमता का ये बंधन

जो बाँध चुका अपना तन-मन,

व्यावहारिकता का ये बंधन

जो रोक चुका अपना जीवन;

बंधन का कुछ करना होगा

जीवन से ही लड़ना होगा;


साँसे लेना इस जीवन में

सिर्फ़ महत्वपूर्ण नहीं है,

खुलकर जबतक जी न लो

जीवन ये पूर्ण नहीं है;

उस जीवन से भी डरना होगा

जीवन से ही लड़ना होगा;


शायद एक कोई कल्पना

जिसे अब मान चुका बचपना

जीवित उसको करना होगा

जीवन से ही लड़ना होगा ....

- Poet here lost his all inner desire-