जब उस मृग को लगती है,
वो बेचैन हो उठता है,
इधर-उधर नज़र दौड़ाता है
पर वह कुछ नहीं पाता है,
तरुओं में ढूँढता है
उनके पत्तों में ढूँढता है,
डाली-डाली में ढूँढता है,
फूलों कि क्यारी में ढूँढता है;
उसके इस बाबलापन पर
फिजायें मुस्कुराती है,
हवाएं सनसनाती है,
पर कोई कुछ नहीं बताती है;
मृग और परेशान होता है
पूर्णरुपेन चैन खोता है,
पर्वतों को छलान्गता है
झरनों में फांदता है,
समंदर को सोचता है
सितारों में खोजता है;
उसके इस नादानी पर
बादल खिलखिलाता है
बिजली आँखें मटकाती है
पर कोई कुछ नहीं बताती है;
एक दिन फिर थक जाता है
आराम करते हुए पाता है
कस्तूरी कि गंध तो यहीं है
पर आस-पास कुछ भी नही है;
वह अब भी परेशान है
दुनिया से हैरान है
अब तो कोई उसे बता दे
उसी के पास कस्तूरी है,
जिसके लिए तय किये उसने
लंबी-लंबी दूरी है।।
-The greatest fear of you lies in your inside-
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