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प्राची के बादल
नया सवेरा अभी हुआ पर
है प्राची में बादल छाया ,
धरती की सूनी किस्मत पर
आज विधाता फिर मुस्काया ;
अब बादल छाये ,छाने दो
मैं बिजली बन जाता हूँ ,
इन बादल से छिप-छिपकर
चिर-आलोक लुटाता हूँ ;
या करो मूझे शक्ति प्रदान
मैं प्राची में जाता हूँ ,
घनघोर तिमिर की मुट्ठी से
सूरज लूटकर लाता हूँ ।
2 comments:
अच्छा है :)
Good poems- keep writing
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