Friday, March 07, 2008

प्राची के बादल









नया
सवेरा अभी हुआ पर
है प्राची में बादल छाया ,
धरती की सूनी किस्मत पर
आज विधाता फिर मुस्काया ;

अब बादल छाये ,छाने दो
मैं बिजली बन जाता हूँ ,
इन बादल से छिप-छिपकर
चिर-आलोक लुटाता हूँ ;

या करो मूझे शक्ति प्रदान
मैं प्राची में जाता हूँ ,
घनघोर तिमिर की मुट्ठी से
सूरज लूटकर लाता हूँ

2 comments:

Vikash said...

अच्छा है :)

Anonymous said...

Good poems- keep writing