शायद कुछ छूट गया है;
दर्द दिया जो तूने मुझको
भूल गया मैं उन सबको पर,
दिल से उनका था अपनापन
वो अपनापन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
तेरे गम को भूल गया मैं
खंडहरों में महल बनाकर,
पर कंकर-पत्थर से पिटकर
भोला दिल टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
लहू से लथपथ दिल था मेरा
घाव सुखाया उसे तपाकर,
यादों का उनसे था बंधन
अब बंधन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है .
Tuesday, July 15, 2008
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6 comments:
स्वागत
अच्छा रचना भाई. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
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यहाँ भी पधारें;
उल्टा तीर
बढिया.....
लिखना जारी रखें
badhiya rachana hai..likhte rahen.
धन्यवाद सबका..
शब्दों की सुन्दर कारीगरी है. बधाई!
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