Tuesday, July 15, 2008

कुछ छूट गया है

शायद कुछ छूट गया है;

दर्द दिया जो तूने मुझको
भूल गया मैं उन सबको पर,
दिल से उनका था अपनापन
वो अपनापन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;

तेरे गम को भूल गया मैं
खंडहरों में महल बनाकर,
पर कंकर-पत्थर से पिटकर
भोला दिल टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;

लहू से लथपथ दिल था मेरा
घाव सुखाया उसे तपाकर,
यादों का उनसे था बंधन
अब बंधन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है .

6 comments:

36solutions said...

स्‍वागत

Amit K Sagar said...

अच्छा रचना भाई. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
---
यहाँ भी पधारें;
उल्टा तीर

रश्मि प्रभा... said...

बढिया.....
लिखना जारी रखें

विजेंद्र एस विज said...

badhiya rachana hai..likhte rahen.

आलोक कुमार said...

धन्यवाद सबका..

राजेश अग्रवाल said...

शब्दों की सुन्दर कारीगरी है. बधाई!