तेरा समीप मैं पा जाऊं
जीवन नया रचा पाऊं ,
ये स्वप्न हमारा-तुम्हारा पर
स्वप्न अभी तक कच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
दूर हमारी आंखों से पर
मन ये मेरा तेरा ही घर ,
मन की सुंदर बगिया में
तेरे नाम के गुच्छे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
पास अगर आए तुम तो
दिल धड़क न जाए ये मेरा ,
फिर टूट न जाए दिल से जो
विश्वास हमारे सच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं ।।
Thursday, July 17, 2008
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3 comments:
अलोक जी,बहुत बढिया रचना है।
दूर हमारी आंखों से पर
मन ये मेरा तेरा ही घर ,
मन की सुंदर बगिया में
तेरे नाम के गुच्छे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
waah aalok ji kaya baat hai...
bina padhe hii comment maarte ho..
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