कल रात को मेरे सपने में
मेरी आंखों के पलकों पर,
हलचल सी मची ;
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख लगे हैं बाहों में और
मन चंचल है ;
उड़ने को किसी आसमान में
जहाँ न हो कोई सीमाये ,
और हम उनमें पंख फैलायें
विहगों से बातें कर लें।
कल रात को मेरे सपने में
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख कटे हैं बाहों से और
दलदल है ;
मैं पड़ा हुआ उस दलदल में
उड़ने की कुंठा को लेकर,
आसमान को ताक रहा
विहगों से मैं जल-भुनकर।
Tuesday, July 22, 2008
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