स्मृतियों के झोंकों से
विकल आज है मेरा मन,
संभालो मेरे कश्ती को
पतवार टुट रहा है,
मन में ज्वार उठ रहा है।
यादों की घनघोर घटा से
संकट में मेरा जीवन,
बचा खेवैया मेरी नैया
मझधार डुब रहा है,
मन में ज्वार उठ रहा है।
Tuesday, September 30, 2008
Saturday, September 13, 2008
चंचलता

मुझे जगाकर ये पूछा
किसके ख़्वाबों में डूबे हो
क्या है उसका नाम बता ?
मैंने कहा कि सुन ऐ हवा
ख्वाब से तुझको लेना क्या
तू ठहर जरा और बोल जरा
क्यूँ है तू इतना चंचल सा ?
ये पेड़ बुलाते हैं मुझको
ये नदी बुलाती है मुझको
ये बादल मुझे बुलाता है
ये वर्षा मुझे बुलाती है ;
सब लोग बुलाते हैं मुझको
इसलिए है मुझमें चंचलता
तू भी अपना ख्वाब छोड़ दे
अब और नहीं ठहर सकता ॥
Tuesday, September 02, 2008
अभिशापित

इस जग को गुलजार किया ,
जिसकी अद्भुत सुन्दरता की
चर्चा जी-भर संसार किया;
पर देख दाग अपने तन पे
चाँद हमेशा कुंठित क्यूँ है ,
चंदा तू अभिशापित क्यूँ है?

सृष्टि को जो पथ दिखलाया
अन्धकार को दूर भगाया,
ठिठुर रही थी धरती ये
अपने ताप से उसे बचाया;
पर अपने ही तापमान से
रवि हमेशा पीड़ित क्यूँ है ,
सूरज तू अभिशापित क्यूँ है ?

और देश की रक्षा की है,
भारत का मस्तक ये है
उदगम ये गंगा की है ;
पर अपने एकाकीपन से
गिरिराज हमेशा चिंतित क्यूँ है ,
गिरिवर तू अभिशापित क्यूँ है?
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