Tuesday, September 02, 2008

अभिशापित

जिसकी शीतल किरणों ने
इस जग को गुलजार किया ,
जिसकी अद्भुत सुन्दरता की
चर्चा जी-भर संसार किया;

पर देख दाग अपने तन पे
चाँद हमेशा कुंठित क्यूँ है ,
चंदा तू अभिशापित क्यूँ है?

सृष्टि को जो पथ दिखलाया
अन्धकार को दूर भगाया,
ठिठुर रही थी धरती ये
अपने ताप से उसे बचाया;

पर अपने ही तापमान से
रवि हमेशा पीड़ित क्यूँ है ,
सूरज तू अभिशापित क्यूँ है ?

जो युग-युग का प्रहरी है
और देश की
रक्षा की है,
भारत का मस्तक ये है
उदगम ये गंगा की है ;

पर अपने एकाकीपन से
गिरिराज हमेशा चिंतित क्यूँ है ,
गिरिवर तू अभिशापित क्यूँ है?

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