
इस जग को गुलजार किया ,
जिसकी अद्भुत सुन्दरता की
चर्चा जी-भर संसार किया;
पर देख दाग अपने तन पे
चाँद हमेशा कुंठित क्यूँ है ,
चंदा तू अभिशापित क्यूँ है?

सृष्टि को जो पथ दिखलाया
अन्धकार को दूर भगाया,
ठिठुर रही थी धरती ये
अपने ताप से उसे बचाया;
पर अपने ही तापमान से
रवि हमेशा पीड़ित क्यूँ है ,
सूरज तू अभिशापित क्यूँ है ?

और देश की रक्षा की है,
भारत का मस्तक ये है
उदगम ये गंगा की है ;
पर अपने एकाकीपन से
गिरिराज हमेशा चिंतित क्यूँ है ,
गिरिवर तू अभिशापित क्यूँ है?
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