आज हवा के झोकों ने
मुझे जगाकर ये पूछा
किसके ख़्वाबों में डूबे हो
क्या है उसका नाम बता ?
मैंने कहा कि सुन ऐ हवा
ख्वाब से तुझको लेना क्या
तू ठहर जरा और बोल जरा
क्यूँ है तू इतना चंचल सा ?
ये पेड़ बुलाते हैं मुझको
ये नदी बुलाती है मुझको
ये बादल मुझे बुलाता है
ये वर्षा मुझे बुलाती है ;
सब लोग बुलाते हैं मुझको
इसलिए है मुझमें चंचलता
तू भी अपना ख्वाब छोड़ दे
अब और नहीं ठहर सकता ॥
Saturday, September 13, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
बहुत सुंदर कविता हे आप की
धन्यवाद
अच्छी भावपूर्ण कविता है. पढ़ कर अच्छा लगा.
लूट तुम््हारे भावोंको... कविता नई बनाता हूं---- अच््छा िलखते हैं आलोक .... शुभकामनाएं
ये हवाएं आपको हमेशा प्यार करती रहें। शुभकामनाएं।
Sunder Bhav Bodh
nirantarata banae rakhe
Post a Comment