स्मृतियों के झोंकों से
विकल आज है मेरा मन,
संभालो मेरे कश्ती को
पतवार टुट रहा है,
मन में ज्वार उठ रहा है।
यादों की घनघोर घटा से
संकट में मेरा जीवन,
बचा खेवैया मेरी नैया
मझधार डुब रहा है,
मन में ज्वार उठ रहा है।
Tuesday, September 30, 2008
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1 comment:
जब भी मन में ज्वार उठे तभी कलम उठाईए और आलोकित कीजिए और स्वयं भी आलाकित हो जाईए।
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