आज मेरा मन विकल है,
तोड़कर इन बंधनों को
काटकर इन बेडियों को
उड़ने को इस आसमान में
होता प्रतिपल चंचल है ,
आज मेरा मन विकल है ;
भूल के सारी यादों को
और पुराने वादों को
बसने को किसी पर्णकुटी में
बहता निर्झर जहाँ कल-कल है
आज मेरा मन विकल है ।
Sunday, October 19, 2008
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