प्रेरणा बनके मैं दुनिया की
प्रेरणा अपनी मैं खो दिया हूँ।
राहों में सबके ये दीपक जलाए
मन का अँधेरा मिटा नहीं पाया,
और उन अंधेरों में राहों को ढूंढता
ठोकर हमेशा मैं खाके जिया हूँ ;
प्रेरणा बनके मैं दुनिया की
प्रेरणा अपनी मैं खो दिया हूँ।
सागर में मथनी चलाने वालों
अब मेरे पास वापस न आना,
सागर से अमृत निकले, न निकले
विष जो भी निकला मैं ही पिया हूँ;
प्रेरणा बनके मैं दुनिया की
प्रेरणा अपनी मैं खो दिया हूँ।
Friday, April 10, 2009
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2 comments:
bahuta achchha likhte hain aap.
bahuta achchha likhte hain aap.
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