इस सफर के हमसफर
लौटकर आ जाओ तुम,
मखमलों से ये गलीचे
तेरे लिए ही हैं बिछाये।
मुझे मालूम यहाँ के
रास्ते हैं पत्थरों के,
और तुझे भी पता है
कितने कहाँ चोट खाये।
फिर भी चले कितने यहीं
इन गलीचों के बिना ही,
मखमलों के बिना ही
और फूलों के बिना ही।
इस सफर के हमसफर
लौटकर आ जाओ तुम,
मखमलों से ये गलीचे
तेरे लिए ही हैं बिछाये।
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