Monday, January 08, 2007

अकेलापन

अकेलापन
किसी निर्जन वन
में अकेले रहने से नहीं आता है,
वो आता है
जब आसपास के लोगों की
भाषा समझ में नहीं आती,
उनके रचे हुए जीवन की
परिभाषा समझ में नहीं आती;

आज मैं अकेला हूँ
आसपास हैं लोग अनेक
सबके चेहरे देखते हुए
भी पहचान नहीं पाता हूँ,
बिना कोई आवाज़ दिए
अपने बढे कदम वापस लाता हूँ,
डर रहता है आवाज़ खोने का
डर रहता है गुमनाम होने का
दुनिया की भीड़ में
उलझे हुए चीड में
सवाल भी उलझ रहे हैं
अकेलापन ये है क्या?

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