बरसात की इस रात में
कहना है तुमसे बात एक ,
सुन सको तो सुन लो तुम
कहता हूँ तुमसे बात एक ।
बरसात की ये बूँदें आज
बिखरी है देखो तिनकों पर,
चुन सको तो चुन लो तुम
जिसमें दिखे विश्वास एक ।
विश्वास है ये बूंद की
कि वह रहेगी बूँद ही,
जब तक न सिखला दे हमें
प्रेम का नया पाठ एक ।
बरसात की इस रात में
कहना है तुमसे बात एक ॥
Thursday, July 24, 2008
Tuesday, July 22, 2008
सपना
कल रात को मेरे सपने में
मेरी आंखों के पलकों पर,
हलचल सी मची ;
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख लगे हैं बाहों में और
मन चंचल है ;
उड़ने को किसी आसमान में
जहाँ न हो कोई सीमाये ,
और हम उनमें पंख फैलायें
विहगों से बातें कर लें।
कल रात को मेरे सपने में
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख कटे हैं बाहों से और
दलदल है ;
मैं पड़ा हुआ उस दलदल में
उड़ने की कुंठा को लेकर,
आसमान को ताक रहा
विहगों से मैं जल-भुनकर।
मेरी आंखों के पलकों पर,
हलचल सी मची ;
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख लगे हैं बाहों में और
मन चंचल है ;
उड़ने को किसी आसमान में
जहाँ न हो कोई सीमाये ,
और हम उनमें पंख फैलायें
विहगों से बातें कर लें।
कल रात को मेरे सपने में
मैंने देखा , मैंने पाया
पंख कटे हैं बाहों से और
दलदल है ;
मैं पड़ा हुआ उस दलदल में
उड़ने की कुंठा को लेकर,
आसमान को ताक रहा
विहगों से मैं जल-भुनकर।
Thursday, July 17, 2008
दूरी
तेरा समीप मैं पा जाऊं
जीवन नया रचा पाऊं ,
ये स्वप्न हमारा-तुम्हारा पर
स्वप्न अभी तक कच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
दूर हमारी आंखों से पर
मन ये मेरा तेरा ही घर ,
मन की सुंदर बगिया में
तेरे नाम के गुच्छे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
पास अगर आए तुम तो
दिल धड़क न जाए ये मेरा ,
फिर टूट न जाए दिल से जो
विश्वास हमारे सच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं ।।
जीवन नया रचा पाऊं ,
ये स्वप्न हमारा-तुम्हारा पर
स्वप्न अभी तक कच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
दूर हमारी आंखों से पर
मन ये मेरा तेरा ही घर ,
मन की सुंदर बगिया में
तेरे नाम के गुच्छे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं;
पास अगर आए तुम तो
दिल धड़क न जाए ये मेरा ,
फिर टूट न जाए दिल से जो
विश्वास हमारे सच्चे हैं ,
हम दूर ही अच्छे हैं ।।
Tuesday, July 15, 2008
कुछ छूट गया है
शायद कुछ छूट गया है;
दर्द दिया जो तूने मुझको
भूल गया मैं उन सबको पर,
दिल से उनका था अपनापन
वो अपनापन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
तेरे गम को भूल गया मैं
खंडहरों में महल बनाकर,
पर कंकर-पत्थर से पिटकर
भोला दिल टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
लहू से लथपथ दिल था मेरा
घाव सुखाया उसे तपाकर,
यादों का उनसे था बंधन
अब बंधन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है .
दर्द दिया जो तूने मुझको
भूल गया मैं उन सबको पर,
दिल से उनका था अपनापन
वो अपनापन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
तेरे गम को भूल गया मैं
खंडहरों में महल बनाकर,
पर कंकर-पत्थर से पिटकर
भोला दिल टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है;
लहू से लथपथ दिल था मेरा
घाव सुखाया उसे तपाकर,
यादों का उनसे था बंधन
अब बंधन टूट गया है ,
शायद कुछ छूट गया है .
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