भविष्य दिखता धुंधला सा,
बीच फंसा कोमल सा मन
जाता है अब तिलमिला सा;
अतीत के किसी दर्पण पर
देखकर अपनी तस्वीर कोई,
भविष्य के पन्नो पर
लिखता हूँ तकदीर नई;
अतीत से जो भी सीखता हूँ
वर्तमान में सही होता है
वर्तमान अतीत में बदल जाता
और वो अपना मूल्य खोता है;
ख़ुद को समझाता हूँ
कि जो है वो सही है,
दुनिया देखकर चिल्लाता हूँ
कुछ भी बेहतर नहीं है;
अतीत से लिपटा हुआ
अतीत को ढोता हुआ,
वर्तमान से हो विमुख
अतीत पर रोता हुआ;
ये अतीत का भूत मूझे
अंदर से खा जायेगा,
जब तक कोई वर्तमान का
पारखी नही आ जायेगा…।
-Poet may be suffering from personality disorder- it seems so-