Sunday, February 18, 2007

प्रायश्चित











जुर्म की डगर पर चलकर
क्या मिला बोलो ये तुझको,
गलत राह यह अपनाकर
खुशी मिली क्या तेरे दिल को;

हे नर-व्याघ्र तुम जगत में
प्रायश्चित के भागी हो,
तुम कलंक इस मनुजता के
मेरे लिए एक अपराधी हो;

झाँक कर देख ले मन में
अब भी तुझमें सच्चाई है,
दिल से इतने बुरे नहीं तुम
अब भी तुझमें अच्छाई है;

अपने अंदर को जरा टटोलो
ख़ुद को इक आवाज़ लगा दो,
कुछ तो तुम प्रयास करो
अंदर सोया इंसान जगा दो ।।

-Your inner soul begging a redemption from you-

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