Friday, February 23, 2007

प्रतिशोध

जख्मों की फूस
के बंडल में,
बदले की चिंगारी जली
प्रतिशोध का ज्वाला
धधक उठा....
जीवन की सुंदर
बगिया में
जाने कैसे आग लगी
प्रतिशोध का ज्वाला
धधक उठा...
पत्थर पत्थर से टकराया
चिंगारी कोई सुलग गया
लकड़ी का एक अदना टुकड़ा
जलता हुआ मशाल बना,
जंगल-जंगल आग लगी फ़िर
सृष्टि जलकर राख हुआ..

ये प्रतिशोध किसी पत्थर का
या उस तरु की टहनी की होगी,
जिसने सुलगाया दावानल ये
कुछ बातें कहनी ही होगी..

इन प्रतिशोध की ज्वाला में
धधक रहा सम्पूर्ण जगत
कभी तो बादल बरसे इसपर
या कोई इन्द्र हो आज प्रकट.....

-Don't unerestimate your action-


1 comment:

brijendra said...

godgiri..prachand godgiri...